Posts

चर्च की प्रार्थना, महात्मा गांधी और वह सबक जो हम हिंदुस्तानी भूल गए

Image
महात्मा गांधी तब दुनिया के लिए वकील मोहन दास हुआ करते थे। जब दक्षिण अफ्रीका गए तो महात्मा ने देखा, रंगभेद जोरों पर है। अगर किसी की चमड़ी का रंग काला हो तो गोरे उसके साथ जानवर से भी बुरा सलूक करते। खुद महात्मा गांधी रंगभेद के कारण ट्रेन से नीचे फेंक दिए गए। तभी उन्होंने तय कर लिया कि इस जुल्म के खिलाफ खड़ा होना है।  रविवार का दिन था, गांधीजी किसी रास्ते से गुजर रहे थे कि वहां एक चर्च दिखा। रविवार था, अंदर प्रार्थना हो रही थी। उन्होंने सोचा, क्यों न प्रार्थना में शामिल हो जाऊं और उसके बाद पादरी साहब से मुलाकात करूं! उन्होंने अंदर दाखिल होना चाहा कि वहां खड़े पहरेदार ने रोक दिया। बोला, तुम काले हो, अंदर गोरे लोग प्रार्थना कर रहे हैं। तुम्हें जाने की इजाजत नहीं है।  गांधीजी वहीं बैठ गए और पादरी साहब का इंतजार करने लगे। प्रार्थना पूरी होने के बाद पादरी साहब आए, गांधीजी से मिले। मालूम हुआ कि ये वही वकील मोहन दास हैं जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा है और पहरेदार ने उन्हें इसलिए अंदर नहीं जाने दिया क्योंकि ये गोरे नहीं हैं। पादरी साहब की आंखों में आंसू आ गए,

हमें भी इसी मुसाफिर की तरह दुनिया में रहना चाहिए

Image
मैं कविताएं ज्यादा नहीं पढ़ता लेकिन महाकवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट की यह कविता मैं बार-बार पढ़ता हूं। दिन में कम से कम दो बार। इस कविता की आखिरी पंक्तियां आपके लिए पेश कर रहा हूं। ये वर्षों पहले मैंने डायरी में नोट की थीं, उसी रूप में आपके लिए प्रस्तुत हैं। कविता का मूलभाव ये है कि एक घुड़सवार किसी जंगल से गुजरता है। जंगल का नजारा बहुत खूबसूरत है। वह बहुत घना जंगल है और बर्फबारी हो रही है। उसका भी मन करता है कि कुछ देर इस खूबसूरती को देखे और यहीं रुक जाए। तभी उसे याद आता है कि उसका लक्ष्य आगे है, यहां रुकने का उसे इरादा नहीं करना चाहिए। वह खुद से कहता है- बेशक यह जंगल बहुत खूबसूरत है लेकिन मेरे पास कई वायदे हैं जो मुझे पूरे करने हैं। मुझे सोने से पहले मीलों दूर जाना है। मुझे सोने (मौत) से पहले मीलों दूर जाना है। हमें भी इसी मुसाफिर की तरह दुनिया में रहना चाहिए। - राजीव शर्मा -  लाइक कीजिए मेरा  फेसबुक पेज

काशी के चंदन में मदीने की खुशबू...

Image